हे कान्हा सबसे पहले तो हम आपको प्रणाम करते हैं..हमको पूरी आशा ही नही विश्वास भी है कि आपके घर पर सब सकुशल होंगे |
हे वंशीवाले हम बड़े ही दुखी मन से यह पत्र आपको लिख रहे हैं | क्या है कि हमारे देश में हम स्त्रियों का दुख समझने वाला कोई नहीं है | देश इस वक्त संकट में है उसे ज्यादा संकट में हम भारत की नारी हैं.. पहले हमने सोचा था कि संकट मोचन तो हनुमान जी हैं हम उन को पत्र लिखें पर क्या है कि वे तो ब्रह्मचारी हैं उनकी तो शादी ही नहीं हुई तो हम औरतों के दुख को कैसे समझ पाएंगे?
सो आपको लिख रहे आप तो तो बीवी बच्चे वाले हो, बहुत सारी पत्नियों को एक साथ हेंडल करते हो तो हम जैसी दुखिया का दर्द तो एक मिनट में हर लोगे | आप तो रहते हो बैकुंठ में और कष्ट आया है पृथ्वी पर ऐसा घोर कष्ट है कि हर कोई घर में कैद होकर रह गया है और इससे सबसे ज्यादा दुःख हम नारियों को झेलना पड़ रहा है | कैसे ? तो सुनिए.. पहले तो हमारे पति दिनभर ऑफिस चले जाते थे और बच्चे आधे दिन स्कूल फिर ट्यूशन और खेल कूद के लिए जाते थे और हम अपनी जिन्दगी बड़े ही आराम से जीते थे | कभी किट्टी पार्टी, कभी शोपिंग कभी आराम |
अब सब दिन भर घर पर बैठे हैं और हम दिनभर रसोई और बर्तनों में जुटे पड़े हैं | सुबह का नाश्ता खत्म नहीं होता तब तक दोपहर का खाना मांगने लगते हैं दोपहर के खाने के बाद काम समेट कर दो घडी बैठ जाएँ तो शाम की चाय नाश्ते का वक्त हो जाता है ..वो सब ख़त्म करते करते रात के खाने का समय हो जाता है ..रात को सोते हैं तो भी यही ख्याल आता है कि सुबह खाने में क्या बनेगा? हमारा हाल तो इतना खराब है कि सब्जियां और जूठे बर्तन भी डिस्को करते नजर आने लगे हैं |
आपको एक बात बताएं जो दिन भर घर में पति होता है ना यह सास ननद से भी ज्यादा खतरनाक हो जाता है। सारा दिन हर चीज पर रोक-टोक करता है ये सामान यहाँ क्यों रखा है ..फ्रिज की सफाई क्यों नहीं हुई ..कपडे इधर क्यों रखे हैं ..आदि इससे अच्छा तो हम गांव में सास के पास ही अच्छे थे कम से कम कुछ काम में तो हाथ बंटा लेती थी और ये आदमी खुद तो ऑफिस का काम का बहाना लेकर कोई मदद नहीं करता ऊपर से सारा दिन आर्डर ऐसे देता है मानो हम होटल चला रहे हों |
हम जैसे तैसे आधी तनख्वाह में घर चला रहे हैं, बजट भी देखना है| और तो और कामवाली तक नहीं है सो सारा काम हमारे कोमल कन्धो पर आ पड़ा है, हम अपना दुःख किसको कहे? अब तो एक दो घंटा का मूड फ्रेश भी नहीं हो पा रहा | वैसे तो हमारे फोन पर बच्चों का कब्जा हो चुका है आजकल पढ़ाई उसी पर होती है जब फोन मिल जाये तब भी हम किसी से मन की बात कर नहीं सकते क्योंकि पति और बच्चे सुनते हैं | सास ननद की बुराई तो हम कर ही नहीं सकते..आजकल मन तो करता है इस पति की बुराई करें जो सारा दिन सास की तरह सर पर बैठा है.. हम कब सोते हैं? कब जागते हैं ? कितना खाते हैं ? किससे बात करते हैं ? हर चीज पर नजर रखता है | हमें तो डर लगने लगा है कि हम पगला जाएंगे पति की जासूसी नजर और बढ़ी हुई दाढ़ी और बाल के साथ बाबाजी वाली शक्ल देखकर…!
पहले किट्टी में जाकर सहेलियों से मिलकर मन हरा हो जाता था | 2-4 घंटा फोन पर बुराई भलाई कर लेते थे | अपनी पसंद का टीवी सीरियल देखते थे और आराम से पैर पसार के दोपहर को सोते थे | अब तो ये सब सपना लगता है |