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बच्चे, बम, बर्बाद
पता नहीं कहाँ से आकर कौओं ने काँव–काँव कर कहा, “उठ जाओ, उठ जाओ।” पत्नी ने प्यार से कहा, “चाय पीकर फ्रेश हो जाओ।” कड़ी–मीठी चाय पता नहीं क्यों बेहद कड़वी लगी। टीवी ऑन किया, तो युद्ध में कूदे देशों के समर्थक नेता एक–दूसरे को दोषी ठहराने काँव–काँव कर रहे थे। मूड ऑफ होने से टीवी भी ऑफ हो गया। खिड़की खोली, झाँककर देखा, तो लगा कि पूरी कॉलोनी ही काँव–काँव कर रही है। कल की कल्पना कर वह काँपने लगा। कितनी कल–कल करती नदियाँ, कितने सर ताने पहाड़, खिलखिलाते खेत–खलिहान, लोग–बाग, थी, थे, था हो जाएँगे, कह नहीं सकता।
शायद नदियाँ हों, परंतु उनके पानी का रंग बदल जाए। खेत–खलिहान हों, फसलें बदल जाएँ। लाशें बिखरी हों और ढेर नजर आएँ। कल–कारखाने मौन आँसू बहाएँ। पहाड़ों के दिल टूट जाएँ… कह नहीं सकता।
“कह नहीं सकताऽऽऽ।” राजनीति के प्रोफेसर ‘क’ की बुदबुदाहट सुन, प्रोफेसर ‘ख’ ने मुस्कराते हुए टोका, “कल क्या होगा, कोई नहीं कह सकता, पर आज तो कुछ कह सकते हैं।”
“आप मुस्करा रहे हैं?”
“कल शायद न मुस्करा सकूँ, इसलिए आज खुलकर मुस्करा रहा हूँ। पता नहीं क्यों आज चाय फीकी–फीकी लगी। आपको तो मालूम ही है, ‘अ’ नामक देश को कई अन्य देशों ने बार–बार उकसाया कि भिड़ जा, भिड़ जा मेरे शेर। आखिरकार ‘अ’ टर्राया, फिर गुर्राया, अंत में भिड़ ही गया।”
“हाँ, मुझे मालूम है, ‘ब’ को भी कई देशों ने आश्वस्त किया, ईंट का जवाब पत्थर से देना मेरे यार। उकसाने और आश्वासन का परिणाम हुआ कि दोनों देशों के सीमावर्ती गाँव खंडहर में तब्दील हो गए। बेकसूर नागरिक मारे गए। इस सबसे तटस्थ देशों की हवा भी प्रदूषित होने लगी। मजबूरन वे हरकत में आए और युद्ध विराम करवाया।” ‘क’ ने कहा।
“अच्छा हुआ! राजनीति, विचारधारा के अलग–अलग गुट अपने देश के समर्थन में आगे आए। खंडहर को सँवारने, पुनः बसाने, सहयोग की भावना ऐसे बरसने लगी, मानो बाढ़ ही आ गई।” ‘ख’ ने कहा।
“बुरा हुआ, राजनीति, विचारधारा के अलग–अलग गुट अपने देश के समर्थन में आगे आए। पड़ोसी देश की कायराना हरकत का प्रत्यक्ष अनुभव करने की अपील का असर हुआ। टिकट की बिक्री दिन–प्रतिदिन बढ़ने लगी। जनता से जबरन आपदा कर वसूलने लगे, आधा खाने लगे, आधा युद्ध की तैयारी में लगाने लगे। बच्चों के कोमल मस्तिष्क में बदले की कठोर भावना भरने, उन्हें निःशुल्क खंडहर देखने दिया गया।” ‘क’ ने कहा।
“हाँ, मैंने एक वाकया पढ़ा, बच्चे वहाँ मजे ले–लेकर लुका–छिपी खेलते थे। एक दिन बच्चे आपस में बतियाने लगे, ‘हमारे घर भी खंडहर में बदल जाएँ, तो हम वहीं लुका–छिपी खेलने लगें।’ मैंने अभी–अभी टीवी पर समाचार सुना है कि गुर्राने वाला देश ‘अ’ खंडहर में परिवर्तित हो चुपचाप पड़ा है।” बताते–बताते प्रोफेसर ‘ख’ गमगीन हो गए।
“क्या हुआ?” प्रोफेसर ‘क’ ने डरकर पूछा।
“बिखर गए बच्चे खंडहर में। मैं उन बच्चों को याद कर रहा हूँ, जिन्हें कभी देखा नहीं।”
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