दिलीप कुमार के समकालीन अभिनेताओं में से यदि देव आनंद, राज कपूर, राज कुमार, बलराज साहनी और शम्मी कपूर को छोड़ दिया जाए तो उनके बाद के तमाम अभिनेताओं में थोड़ा बहुत दिलीप कुमार दिखाई भी दे जाता है और सुनाई भी।

हृषिकेश मुखर्जी की फ़िल्म ‘आनंद’ में एक संवाद है – “आनंद मरा नहीं, आनंद मरते नहीं!” यह संवाद यदि किसी व्यक्ति पर सटीक बैठता है तो वो हैं दिलीप कुमार। 98 वर्ष की आयु में 7 जुलाई 2021 की सुबह 07.30 (भारतीय समय) दिलीप कुमार अपना पार्थिव शरीर त्याग कर परलोक की यात्रा पर चल दिये। मगर अपने पीछे वे अपने अभिनय का इतना सरमाया छोड़ गये हैं कि वे हमेशा हमारे दिलों में धड़कते रहेंगे।
दरअसल दिलीप कुमार के समकालीन अभिनेताओं में से यदि देव आनंद, राज कपूर, राज कुमार, बलराज साहनी और शम्मी कपूर को छोड़ दिया जाए तो उनके बाद के तमाम अभिनेताओं में थोड़ा बहुत दिलीप कुमार दिखाई भी दे जाता है और सुनाई भी। 
राजेन्द्र कुमार, मनोज कुमार, संजय ख़ान, अमिताभ बच्चन, राजेश खन्ना, शाहरुख़ ख़ान जैसे सभी बड़े नायक दिलीप कुमार के अभिनय से प्रभावित रहे। आने वाली पीढ़ियां भी दिलीप कुमार के अंदाज़ से आसानी से मुक्त नहीं हो पाएंगे। 

दिलीप कुमार के बारे में एक ग़लत धारणा फैला दी गयी थी कि वे ट्रैजेडी किंग हैं। गिनी-चुनी ट्रैजिक फ़िल्मों के चलते उनके पूरे अभिनय योगदान को ट्रैजेडी के खाते में डाल दिया गया है। दिलीप कुमार को 8 बार फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिला इसमें दो ट्रैजेडी फ़िल्में शामिल हैं – दाग़ (1954) और देवदास (1957)। ध्यान देने लायक बात यह है कि उन्हें आज़ाद (1956), कोहिनूर (1961), लीडर (1964), और राम और श्याम (1968) के सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिला और ये चारों फ़िल्में कॉमेडी की श्रेणी में आती हैं। वहीं नया दौर (1958) और शक्ति (1983) में ड्रैमेटिक किरदार थे जिनका ट्रैजेडी से कुछ लेना देना नहीं। वैसे उनका अभिनय इतना महान था कि इन 8 बार के अतिरिक्त उन्हे दस बार फिल्मफेयर के लिए नामित भी किया गया। 
दिलीप कुमार के जीवन की एक श्रेष्ठ भूमिका रही फ़िल्म गँगा-जमुना में तो दूसरा यादगार  किरदार रहा मुग़ल-ए-आज़म में शहज़ादा सलीम। गंगा-जमुना में उनका सामना वैजयन्ती माला, अपने भाई नासिर ख़ान, कन्हैया लाल और अनवर हुसैन से था तो मुग़ल-ए-आज़म में सीधे-सीधे पापा जी पृथ्वीराज कपूर से। पापा जी का ‘लार्जर दैन लाइफ़’ व्यक्तित्व एवं अभिनय का सामना कर पाना आसान नहीं था। मगर दोनों ही फ़िल्मों में दिलीप कुमार ने अविस्मरणीय अभिनय किया। 
दिलीप कुमार ने अपने लगभग 50 वर्षीय सक्रिय अभिनय जीवन में कुल जमा 62 फ़िल्मों में अभिनय किया। इनमें कुछ ऐसी फ़िल्में भी शामिल हैं जिनमें उन्होंने केवल अतिथि भूमिका की थीं, जैसे कि साधु और शैतान, कोशिश, फिर कब मिलोगी। यानि कि दिलीप कुमार को संख्या में नहीं गुणवत्ता में विश्वास था। आज जब हम देखते हैं कि अनुपम खेर 400 से अधिक फ़िल्मों में अभिनय कर चुके हैं, तो हैरानी होती है कि दिलीप कुमार, राज कपूर, देव आनन्द और राजकुमार सरीखे कलाकार फ़िल्मो के लिये मना कैसे कर पाते होंगे जबकि निर्माता पैसों से भरा ब्रीफ़केस लिये साइन करने को उतावला रहता था। 
एक ख़ास बात यह है कि दिलीप कुमार ही की तरह मीना कुमारी को भी ट्रैजेडी क्वीन कहा जाता था। इन दो महान अभिनेताओं ने तीन फ़िल्मों में साथ-साथ काम किया – फ़ुटपाथ (1953) आज़ाद (1956), औऱ कोहिनूर (1961)। इन में से दो फ़िल्में कॉमेडी से भरपूर थीं – आज़ाद और कोहीनूर – और दोनों ही फ़िल्मों के लिये दिलीप कुमार को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिला। 

दिलीप कुमार के पिता मुहम्मद सरवर ख़ान बम्बई में फलों के बड़े कारोबारी थे। उस समय दिलीप कुमार यूसुफ़ सरवर ख़ान हुआ करते थे। ज़ाहिर है कि यूसुफ़ भी पिता ही की तरह फलों के कारोबार से जुड़े। मगर किसी बात पर पिता-पुत्र में कोई अनबन सी हो गयी और दिलीप कुमार पुणे चले गये।
उन्होंने ब्रिटिश आर्मी कैण्टीन में असिस्टेंट की नौकरी कर ली। वहां उन्होंने सैनिकों के लिये एक सैण्डविच काउंटर खोल लिया जो ख़ासा लोकप्रिय हो गया। बहुत कम लोगों को पता होगा कि स्वतन्त्रता आंदोलन का समर्थन करने के लिये उस समय युवा यूसुफ़ ख़ान को गिरफ़्तार कर लिया गया था और उन्हें जेल भी हुई। वहां से वापिस मुंबई आने के बाद यूसुफ़ ख़ान ने तकिये बेचने का काम भी किया मगर जब दिल में कलाकार बसता हो तो इन्सान व्यापार कैसे कर सकता है। 
दिलीप कुमार के फ़िल्म कलाकार बनने में उनके एक साइकॉलोजिस्ट मित्र डॉक्टर मसानी का हाथ भी कहा जा सकता है। दिलीप कुमार अपनी आत्मकथा में लिखते हैं कि चर्चगेट स्टेशन पर डॉ. मसानी मिले तो उन्होंने कहा चलो मैं देविका रानी से मिलने जा रहा हूं। तुम भी उनसे मिल लो, शायद तुम्हें कोई काम मिल जाए। बस देविका रानी से यह मुलाक़ात यूसुफ़ ख़ान के दिलीप कुमार बनने की प्रक्रिया का पहला क़दम था। 1940 के दशक में यानि कि 1943 में देविका रानी ने दिलीप कुमार को ₹1,250/- प्रति माह की नौकरी की पेशकश कर दी। याद रहे एक आम आदमी की पगार उन दिनों शायद ₹50/- प्रति माह हुआ करती थी। 
बॉम्बे टाकीज़ की मालकिन देविका रानी ने कलाकार अशोक कुमार एवं निर्देशक शशधर मुखर्जी की देखरेख में दिलीप कुमार की अभिनय ट्रेनिंग की शुरूआत करवा दी। शायद इसीलिये दिलीप कुमार उम्र भर अशोक कुमार के अभिनय के प्रशंसक रहे। दिलीप कुमार कहते हैं, “मेरा प्रयास हमेशा यही रहा कि मैं अशोक कुमार की नक़ल न करूं।”
अपनी आत्मकथा में दिलीप कुमार लिखते हैं, “उन्होंने (देविका रानी ने) अपनी शानदार अंग्रेज़ी में कहा – यूसुफ़ मैं तुम्हें जल्द से जल्द एक्टर के तौर पर लॉन्च करना चाहती हूं… ऐसे में यह विचार बुरा नहीं है कि तुम्हारा एक स्क्रीन नेम हो… ऐसा नाम जिससे दुनिया तुम्हें जानेगी और ऑडियंस तुम्हारी रोमांटिक इमेज को उससे जोड़कर देखेगी… मेरे ख़याल से दिलीप कुमार एक अच्छा नाम है… जब मैं तुम्हारे नाम के बारे में सोच रही थी तो ये नाम अचानक मेरे दिमाग़ में आया… तुम्हें यह नाम कैसा लग रहा है?”
देविका रानी ने 1936 में अशोक कुमार को अभिनेता के रूप में मौक़ा दिया था। उन्होंने ही कुमुदलाल गांगुली को अशोक कुमार बनाया। फ़िल्मों में कुमार नाम की परम्परा अशोक कुमार से ही शुरू हुई। फिर तो दिलीप कुमार, राजेन्द्र कुमार, मनोज कुमार, राज कुमार जैसे कुमारों की लाइन ही लग गयी। 1943 में दिलीप कुमार को सिनेमा में एंट्री मिली तो उसी साल अशोक कुमार के जीवन की सबसे बड़ी सुपर हिट फ़िल्म किस्मत रिलीज़ हुई।

दिलीप कुमार की मृत्यु के बाद उनके फ़िल्मी नाम को लेकर भी विवाद उत्पन्न किये जाने की ख़बरें सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं। फ़िल्म के रुपहले पर्दे के लिये नाम बदलने की परम्परा बहुत पुरानी है। मैंने ऊपर अशोक कुमार के बारे में तो बताया ही है लीजिये और भी बहुत से नाम बता देता हूं – राज कपूर (असली नाम रणबीर राज कपूर), देव आनंद (असली नाम धर्मदेव आनंद), शम्मी कपूर (शमशेर राज कपूर), शशि कपूर (बलबीर पृथ्वीराज कपूर),  सुनील दत्त (असली नाम बलराज दत्त), किशोर कुमार (आभास कुमार गांगुली), राज कुमार (असली नाम कुलभूषण पंडित), जितेन्द्र (असली नाम रवि कपूर), राजेश खन्ना (असली नाम जतिन खन्ना), संजीव कुमार (असली नाम हरि ज़रीवाला), रजनीकांत (असली नाम शिवाजी रॉव गायकवाड़) बॉबी दियोल (विजय सिंह दियोल)। और सूची यहीं ख़त्म नहीं होती। 
सदी के महानायक अमिताभ बच्चन का असली नाम इन्किलाब श्रीवास्तवहै; सलमान खान का नाम अब्दुल रशीद ख़ानहै, अक्षय कुमार का असली नाम राजीव हरी ओम भाटिया है; अजय देवगन का असली नाम है विशाल वीरू देवगन; प्रीती ज़िंटा का असली नाम प्रीतम ज़िंटा सिंह है; टाइगर पटौदी और शर्मिला टैगोर के पुत्र सैफ़ अली ख़ान का असली नाम है साजिद अली ख़ान; जॉन अब्राहम का असली नाम है फ़रहान अबराहम;  ‘मिथुन चक्रवर्तीका असली नाम गौरंगा चक्रवर्तीहै; सनी दियोल का नाम अभय सिंह दयोल है; महिमा चौधरी का नाम है ऋतु चौधरी; सनी लियोन का असली नाम है करनजीत कौर वोहरा; मल्लिका शेरावत का नाम है रीमा लाम्बा और टाइगर श्रॉफ़ का असली नाम है जय हेमंत श्रॉफ़।
यदि दिलीप कुमार पर यह आरोप लगाया जाता है कि उन्होंने फ़िल्मों में सफलता पाने के लिये अपना नाम बदल कर हिन्दू नाम रख लिया तो फिर जो हिन्दू कलाकार हैं उन्होंने अपना असली नाम बदल कर फ़िल्मी नाम क्यों रखा होगा? यहां यह भी बताना चाहूंगा कि मेरी अपनी पुत्री दीप्ति शर्मा ने टीवी और सिनेमा के लिये अपना नाम बदल कर रखा है आर्या शर्मा।
दिलीप कुमार के बारे में कहा जाता है कि वे फ़िल्में चुनने के मामले में ख़ासे नकचढ़े थे। मगर इस सब के बावजूद उन्होंने अपने ज़माने के बड़े सितारों के साथ काम करने में कभी कोई झिझक नहीं दिखाई। उन्होंने राजकपूर (अंदाज़ 1949), अशोक कुमार (दीदार 1951), देव आनंद (इन्सानियत 1955), राजकुमार (पैग़ाम 1959, सौदागर 1991), संजीव कुमार, बलराज साहनी (संघर्ष 1968) अमिताभ बच्चन (शक्ति 1982) के साथ जम कर काम किया। वैसे उन्होंने चरित्र अभिनेता बनने के बाद शम्मी कपूर, नूतन, जैकी श्रॉफ़, नसीरूद्दीन शाह, अनिल कपूर, संजय दत्त आदि के साथ भी काम किया। 
फ़िल्मों में नेचुरल एक्टिंग की बात हर काल में कही जाती रही। एक ज़माने में कहा जाता था कि कुंदन लाल सहगल ने सहज अदाकारी की नींव रखी। फिर यही बात अशोक कुमार, मोतीलाल और बलराज साहनी के बारे में भी कही गयी। मगर दिलीप कुमार ने अदाकारी के वो मानदण्ड खड़े कर दिये कि आसानी से उनके स्तर तक पहुंचना किसी भी अन्य कलाकार के लिये संभव नहीं हो पाएगा।
दिलीप कुमार के बारे में सत्यजीत रे का कहना था कि वे सबसे बेहतरीन ‘मेथड एक्टर’ हैं। यह कहना अनुचित न होगा कि हिन्दी सिनेमा के दो ही काल हैं… एक दिलीप कुमार के आने से पहले और एक उनके आने के बाद।
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.

18 टिप्पणी

  1. बधाई, बहुत ख़ूब ‘दिलीप कुमार मरा नहीं करते’ जनता जनार्दन के दिलों में बसा कलाकार कभी मरा नहीं करता।
    शोधपूर्ण निष्पक्ष लेख के लांचिंग साधुवाद।
    नीलू गुप्ता
    कैलिफ़ोर्निया

  2. , स्वर्गीय दिलीप कुमार को बहुत सुन्दर श्रद्धांजलि दी है आपने.. उनके साथ अन्य रोचक जानकारियां भी आलेख का महत्त्व बढ़ा रही हैँ.

  3. बात जब भी दिलीप कुमार की हो, यही कहना चाहूंगी कि दिलीप कुमार एक ही पैदा हुआ, लेकिन बाद के दौर में कोई बन नहीं पाया। हालांकि कई बड़े फ़िल्मी सितारों ने उनके अभिनय की नकल करने की कोशिश की। उन्हें ट्रेजेडी किंग कहा जाता है लेकिन कॉमेडी के रोल में भी उनके जैसा उस दौर में कोई न हुआ। फ़िल्म आज़ाद, कोहिनूर, राम और श्याम, गोपी….कौन भूल सकता है उनकी सहज कॉमेडी को। उनके जैसे अभिनय सम्राट मरा नहीं करते, ध्रुव तारा की तरह चमका करते हैं। जाते जाते…..
    ये ज़िंदगी के मेले ये ज़िंदगी के मेले
    दुनिया में कम न होंगे अफ़सोस हम न होंगे

  4. “ऐसा होना भी बहुत अच्छा है, जब ये
    दुनिया को पता हो कि मैं दिलीप हुआ
    ऐसा जाना भी बहुत अच्छा है ,जब
    न जाना कि हमीं हैं यूसुफ़ “।
    Dr prabha mishra

  5. सच है..दिलीप कुमार मरा नही करते। नमन।
    नाम परिवर्तन के विषय मे आपका कथन सही है और सूचना रोचक।

    • तेजेन्द्र जी अच्छी संपादकीय है, समय के अनुसार आपने उनकी मोहब्बद की बातें नहीं की है वैसे मै आपकी फिल्मी जानकारी का कायल हूं, लगभग डेढ़ साल पहले साहित्य अकादमी दिल्ली में शैलेंद जी पर आपका व्याख्यान अभी भी ताज़ा है,

  6. यह एक अकाट्य सत्य है जब भी अभिनय कलाकारों के नाम कहीं भी लिए जायेंगे ” दिलीप कुमार ” इस नाम के बिना अधूरी रहेगी … अपने समय आकाश के ऐसा सुनहरा हस्ताक्षर हैं जो सदैव ही प्रकाश देता रहेगा । अभिनय की चलती फिरती पाठशाला कहा जाय तो अतिशयोक्ति नहीं होगी ।

  7. अति सुन्दर अभिव्यक्ति दिलीप कुमार जैसे कलाकार मरते नहीं वह अपनी कला द्वारा हर काल में समाज को प्रभावित करते रहेंगे ।

  8. वह एक दिलीप कुमार थे कोई और दिलीप कुमार बन नहीं सकता।
    बेहतरीन लिखा है।

  9. बहुत बढ़िया सर। देविका रानी जी के बारे में एक आलेख कभी लिखें सर। उनके बारे में और जानने की इच्छा है।

  10. सराहनीय
    दिलीप कुमार जी के जीवन का रोचक विवरण ।
    दलीप कुमार जी एक व्यक्ति नहीं संस्था थे।
    उनके जीवन से अनेक लोगो ने बहुत कुछ सीखा ।
    ईशवर उनकी आत्मा को चिरशान्ति प्रदान करें

  11. बहुत उम्दा जानकारी। दिलीप कुमार की शख्शियत को बेहतर तरीके से लिखा है। कई अन्य नामों के बारे में भी जाना। धन्यवाद

  12. बहुत बढ़िया लेख, सिनेमा जगत में दिलीप कुमार जी से संबंधित नवीन जानकारियों से भरपूर
    तेजेन्द्र जी साधुवाद

  13. आदरणीय ! अनुपम सम्पादकीय के लिए हार्दिक साधुवाद स्वीकारें। दिलीप कुमार अभिनय कला के साक्षात् महाकाव्य थे। वह अपने हुनर में बेजोड़ रहे। आपने अभिनेताओं के नाम बदलने विषयक बहुत श्रेष्ठ जानकारी पाठकों को उपलब्ध कराई। आपका सम्पादकीय अति सराहनीय है।

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