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ग़ज़ल नक्ल हो अच्छी आदत नहीं है।
कहे खुद की सब में ये ताकत नहीं है।।
है आसान इतना नहीं शेर कहना।
हुनर है क़लम का सियासत नहीं है।।
नहीं छपते दीवान ग़ज़लें चुराकर।
अगर पास खुद की लियाक़त नहीं है।।
हिलाता है दरबार में दुम जो यारों।
कहे सच ये उसमें सदाक़त नहीं है।।
जो डरता नहीं है सुख़नवर वही है।
सही बात कहना बगावत नहीं है।।
सभी खुश रहें बस यही चाहता हूँ।
हमारी किसी से अदावत नहीं है।।
दबाया है झूठों ने सच इस कदर से।
कि सच भी ये सचमें सलामत नहीं है।।
दरिंदे भी अब रहनुमा बन रहे हैं।
ये अच्छे दिनों की अलामत नहीं है।।
निज़ाम आज बिगड़ा है ऐसा जहाँ मे।
किसी की भी जाँ की हिफाजत नहीं है।।
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