Monday, May 20, 2024
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संपादकीय – बकरी ने दूध दिया मगर मेंगनी डाल कर

साभार : Republic World

विकसित और विकासशील देशों के बीच जो खाई बनी है ब्रिटेन उस खाई को और अधिक बड़ी बना रहा है। एक तरफ़ अमरीका और ब्रिटेन में बनी वैक्सीन बहुत महंगी है तो वहीं भारत में बनी कोवीशील्ड और कोवैक्सीन उनके मुकाबले बहुत सस्ती हैं। भला फ़ाइज़र, एस्टेरेज़ेनका, और जॉन्सन अण्ड जॉन्सन जैसी कंपनियां अपना नुक़्सान कैसे बरदाश्त कर सकती हैं। तो हो गयी वैक्सीन में भी रंगभेद नीति। विकसित देशों की गोरी चमड़ी वाली वैक्सीन भारत, रूस और चीन में बनी वैक्सीन से बेहतर क़रार दे दी गयी।

किसी भी देश की मानसिकता को बदलना आसान नहीं होता। इंग्लैण्ड ने लगभग 200 वर्षों तक दुनिया में एकछत्र राज किया। भारत को लेकर ब्रिटेन आज भी शायद ऐसा ही महसूस करता है कि वे राजा हैं और भारतीय उनकी प्रजा हैं। ‘बड़ा साहब’ वाले रवैये से बाहर आ पाना उनके लिये आसान नहीं लगता। 
सच तो यह भी है कि भारत की शुरूआती सरकारें भी शायद इस मानसिकता से आसानी से उबर नहीं पा रही थीं। भारतीय संसद में फ़रवरी 2021 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक किस्सा सुनाया। मामला कुछ यूं था कि 1940 में जब विंस्टन चर्चिल ब्रिटेन के प्रधानमंत्री थे, तब उनके लिए तमिलनाडु के त्रिची (तिरुचरापल्ली) से सिगार जाते थे। ये सिगार व्यवस्थित रूप से चर्चिल तक पहुंचते रहें, इसके लिए एक पद विशेष रूप से बनाया गया। पद का नाम रखा गया सी.सी.ए.। इस पद का सी.ए.ए. या एन.आर.सी. से कुछ लेना देना नहीं था। इसका अर्थ था चर्चिल सिगार असिस्टेण्ट’। 
मज़ेदार बात यह है कि 1945 के बाद विंस्टन चर्चिल तो ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रहे नहीं। फिर 1947 में भारत स्वतंत्र हो गया, लेकिन सी.सी.ए. का यह पद बना रहा। दरअसल, इस घटना के माध्यम से प्रधानमंत्री मोदी ने व्यवस्था की उस सोच को उजागर किया, जहां यथास्थिति बनाए रखने के चक्कर में कुछ ऐसे ही आश्चर्यजनक और हास्यास्पद उदाहरण कायम हो जाते हैं।
जो व्यक्ति इस पद पर काम कर रहा था उसने 1970 के वेतन आयोग को गोपनीय चिट्ठी लिख कर सूचित किया कि एक लंबे अरसे से उसके वेतन में कोई बढ़ोतरी नहीं की गयी है। वेतन आयोग को उस पद के बारे में कोई जानकारी ही नहीं थी।
अब हम भारतीय तो इस मानसिकता से शायद उबर आए हैं मगर गोरा साहबों को इससे बाहर आने में शायद अभी समय लगेगा। पहले तो ब्रिटेन ने भारत में निर्मित कोवीशील्ड वैक्सीन को मान्यता देने से ही इनकार कर दिया। जबकि कोवीशील्ड वैक्सीन ऑक्सफ़र्ड विश्वविद्यालय द्वारा बनाए गये फ़ार्मूले पर ही आधारित है। इस वैक्सीन को ब्रिटेन में एस्ट्राज़ेनेका वैक्सीन कहा जाता है। भारत ने कई लाख ऐसे वैक्सीन ब्रिटेन को भी बना कर दिये और विश्व के बहुत से देशों को निर्यात भी किये। 
जिन देशों को भारत ने कोवीशील्ड वैक्सीन निर्यात की उनमें से बहुत से देशों के नागरिकों की वैक्सीन वैद्य मानी जाएगी मगर भारत की नहीं… एक अजीब सी भ्रांति फैला दी गयी… टोटल गड़बड़झाला!
जब भारत के विदेश मंत्री श्री एस. जयशंकर ने यह मुद्दा उठाया और भारत ने लगभग धमकी दे डाली कि वैक्सीन के मामले में ब्रिटेन के साथ वही व्यवहार किया जाएगा जो वह भारत के साथ कर रहा है, तो ब्रिटेन की सरकार नींद से जागी। तुरत-फुरत में कोवीशील्ड को तो मान्यता दे दी गयी मगर भारतीय वैक्सीन प्रमाणपत्र को शक के दायरे में डाल दिया गया। इसे ही तो कहते हैं कि बकरी ने दूध दिया… मगर मेंगनी डाल कर। कोवीशील्ड यदि किसी अन्य देश में लगवाई जाए तो मान्य है मगर भारत का वैक्सीन प्रमाणपत्र मान्य नहीं है। ब्रिटिश सरकार का मानना है कि भारत में तो बी.ए., एम.ए. और दूसरी डिग्रियां ख़रीदी जा सकती हैं तो फिर वैक्सीन सर्टिफ़िकेट क्यों नहीं। 
पाकिस्तान ने तो कमाल ही कर दिया। ब्रिटेन की सोच को ऐसी ख़ुराक दे डाली कि पूरे का पूरा भारतीय उपमहाद्वीप ही शक़ के दायरे में आ खड़ा हुआ। लाहौर के एक हस्पताल में पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ के नाम से एक वैक्सीन प्रमाणपत्र बना दिया गया जबकि नवाज़ शरीफ़ पिछले दो वर्षों से लंदन में रह रहे हैं और उनका पाकिस्तानी पासपोर्ट भी निरस्त कर दिया गया है। 
भारत में एक बात देख कर थोड़ी हैरानी भी हुई कि वैक्सीन मामले में भी भारत के विपक्षी दल एकजुट हो कर ब्रिटेन के विरुद्ध नहीं बोले। बल्कि वे तो सरकार को ही इस मामले में दोशी ठहराने लगे।  
एक कार्टून आजकल व्हट्सएप पर वायरल हो रहा है जिसमें बॉरिस जॉन्सन एक भारतीय को कह रहे हैं, हमारे स्टेण्डर्ड बहुत ऊंचे हैं… इतने ऊंचे कि वे डबल-स्टेण्डर्ड बन गये हैं!”
ब्रिटिश सरकार के नए यात्रा नियमों के अनुसार भारत में रहने वाले किसी व्यक्ति ने यदि कोवीशील्ड वैक्सीन लगवायी है तो उसे यूके पहुंचने के बाद 10 दिन होम क्वारंटीन में रहना पड़ेगा और टेस्ट भी करवाना होगा। भारत समेत अफ्रीका, साउथ अफ्रीका, यूएई, तुर्की, जॉर्डन, थाईलैंड, रूस से अगर कोई यूके जा रहा है तो इन सबको इसी प्रक्रिया से गुज़रना पड़ेगा। 
दरअसल विकसित और विकासशील देशों के बीच जो खाई बनी है ब्रिटेन उस खाई को और अधिक बड़ी बना रहा है। एक तरफ़ अमरीका और ब्रिटेन में बनी वैक्सीन बहुत महंगी है तो वहीं भारत में बनी कोवीशील्ड और कोवैक्सीन उनके मुकाबले बहुत सस्ती हैं। भला फ़ाइज़र, एस्टेरेज़ेनका, और जॉन्सन अण्ड जॉन्सन जैसी कंपनियां अपना नुक़्सान कैसे बरदाश्त कर सकती हैं। तो हो गयी वैक्सीन में भी रंगभेद नीति। विकसित देशों की गोरी चमड़ी वाली वैक्सीन भारत, रूस और चीन में बनी वैक्सीन से बेहतर क़रार दे दी गयी। 
पश्चिमी देश वैश्विक महामारी में भी अपनी कंपनियों को बेजा लाभ दिलवाने से बाज़ नहीं आ रहे। एक तरफ़ भारत है जिसकी आबाद 1.30 अरब है और वह एशियाई और अफ़्रीकी देशों को मुफ़्त वैक्सीन मुहैया करवा रहा है। वहीं दूसरी ओर ब्रिटेन है जो यह बरदाश्त नहीं कर पा रहा। याद रहे कि नवंबर से अमरीका में भारत से आने वाले उन सभी यात्रियों को भी सुरक्षित माना जाएगा जिन्होंने कोवीशील्ड वैक्सीन के दोनों इंजेक्शन लगवा रखे हैं। 
ब्रिटेन को याद रखना होगा कि ब्रेक्सिट के बाद उसे व्यापारिक संबंधों के लिये भारत की आवश्यक्ता पड़ने वाली है। भारतीय कंपनियों ने ब्रिटेन में बड़े स्तर पर पूंजी निवेश कर रखा है जिससे ब्रिटेन में बड़ी संख्या में लोगों को रोज़गार मिल रहा है। भारत के प्रति कोई भी निर्णय लेने से पहले उसके राजनीतिक असर को भी समझना होगा। आज भारत एक वैश्विक शक्ति के रूप में उभर रहा है। ब्रिटेन को उसे बराबरी का दर्जा देकर ही अपना व्यवहार तय करना होगा।
तेजेन्द्र शर्मा
तेजेन्द्र शर्मा
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.
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28 टिप्पणी

  1. भारत को आज भी विकाशशील मानकर अपनी उपनिवेशवाद की मानसिकता दिखाने वाले ब्रिटेन के वैक्सीन के मुद्दे पर अच्छी विवेचना करता हुआ बढ़िया आलेख। ‘सी ए ए’ से जुड़ी जानकारी वाकई ग़ौरतलब और हैरान करने वाली है। एक ऐसे विषय पर, जहां विपक्ष का अपना मत प्रकट न करना वाकई एक प्रश्न खड़ा करता है, आप का संपादकीय लिखना आपकी जागरूकता का परिचायक भी हैं। हार्दिक बधाई सहित।

  2. वैक्सीन के बहाने, सम्पादकीय में 1945 से लेकर2021तक के
    राजनैतिक चिंतन के रहस्यों से पर्दा उठा दिया गया ।
    वैश्विक आपदा ने विकसित और विकासशील देशों को यह अवसर दिया कि वे अपने को साबित कर सकें ।भारत की सत्तारूढ़ पार्टी ने अपनी महती भूमिका निभाई है ।बड़ी तथ्यात्मक बात है कि विकसित देशों के फॉर्मूले पर भारत में बनी वैक्सीन, कम बेहतर और ब्रिटेन या अमेरिका में बनी सर्वश्रेष्ठ ।संकेत अच्छा है कि भारत को अपनी पर्यटन नीति में कड़ाई कर दे तो सुपर पावर मानने वालों को समझ आ जायेगी ।
    नीतिगत विवेचना हेतु साधुवाद
    Dr Prabha mishra

  3. विकसित और विकाशील की खाई …..
    हमारे देश पर 200 वर्ष से अधिक राज करने वाले एक ही उद्देश्य से राज करते थे । डिवाइड अण्ड रूल , वही सिद्धान्त अब तक जारी है।
    तुम्हारी कमीज़ मेरी कमीज़ से सफ़ेद हो ही नहीं सकती !
    वैक्सीन और दवा अब कोई औषधि नहीं तिजारत का बहुत बड़ा वैशविक संगठन बन गया है। बीमारी और महामारी तो केवल आंकड़ों का खेल रह गया जिसे चाहो मीडिया की पीठ पर बैठा कर दुनिया की सैर कर दो। और तिजोरियाँ भर लो।
    हमारा तो पानी भी अमृत है, तुम्हारी संजीवनी तो जंगली घास है। न जाने अविकसित और विकासशील देशों के लोग की मिट्टी के बने हैं क्या उनकी मति भष्ट हो गई है। पाश्चात्य संस्कृति और देशो को आज भी स्वर्ग की भांति समझते हैं, और अपनी सोने की चिड़िया को कैद कर बाजार में बेच रहे हैं। आँखों के सामने हो रहे सच पर विस्वास नहीं पर चिकनी चुपड़ी बातों में बहक कर झूठ पर यक़ीन हो जाता है।
    जागो इन्सानो जागो, झूठ की सवारी बारूद के ढेर से कम खतरनाक नहीं !

  4. गोरों का रवैय्या कैसे बदले इनमें बहुत अधिक superiority complex जो है ।कहते हैं रस्सी के जलने पर भी ऐंठ नहीं जाती, यही हाल ब्रिटेन का भी है…. ईश्वर सद्बुद्धि दे।
    गहरी सोच के साथ लिखा है आपने, बधाईयाँ

  5. तेजेन्द्र जी, विदेशियों से पहले हम भारतीयों को आपकी तरह ही मानसिक जकड़ बन्धनों से मुक्त होना होगा।

    उनकी निम्नस्तरीय सोच गोरे काले तक की थी, है और रहेगी ही

  6. निर्भीक, तटस्थ और सशक्त संपादकीय के लिए माननीय तेजेंद्र जी को साधुवाद। आज भारत में भी ऐसे ही संपादकों की आवश्यकता है, जो सच को सच लिख सकें। माँ सरस्वती आपकी कलम को ऐसी ही साहसिकता निरंतर प्रदान करें, यही प्रार्थना है।

  7. आदरणीय संपादक महोदय सादर नमस्कार। संपादकीय में वैक्सीन की ताजी घटना को चित्र करते हुए महाशक्तियों की चालबाजियों को उजागर किया है। गाहे-बगाहे आज भी यह शक्तियां भारत के प्रति क्या दृष्टिकोण रखती हैं यह हमें समझ में आ जाना चाहिए आपका संपादकीय पढ़कर स्मरण हो जाना चाहिए अपनी अस्मिता के प्रति सावधान भी। ब्रिटेन में रहते हुए भी वहां की सच्चाई उजागर करने में आप तनिक भी नहीं चूकते यह आपकी भारतीयता का प्रतीक है। ऐसे
    निष्पक्ष और साहसी दृष्टिकोण के लिए साधुवाद।

  8. ब्रिटेन जैसे जो विकसित देश भारत को आज भी नीची नज़र से देख रहे हैं, उनको अपनी सोच का रवैया बदलना होगा ; यह उद्घोष आपका सम्पादकीय कर रहा है। बधाई।
    वैक्सीन में भी रंगभेद नीति अवांछनीय है। इस नीति के विरुद्ध हमें एकमत होने के‌ लिए आपका प्रबुद्ध सम्पादकीय स्पष्ट संकेत भी कर रहा है।
    आपने बकरी वाला मुहावरा ऐसे फ़िट कर दिया है जैसे अँगूठी में नगीना।

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