दक्षिण अफ्रीका में मचे हिंसा व उपद्रव का एक दृश्य (साभार : Firstpost)
मैं जब डरबन गया था तो मैंने उस शहर के ढांचे को समझने का प्रयास किया। रंगभेद की नीति वाली सरकार ने शहर को कुछ इस तरह बांटा था कि अल्पसंख्यक श्वेत लोगों के जान-माल की रक्षा की जा सके। शहर दिल्ली की तरह कुछ गोलाई लिये था और मुंबई की तरह लंबी भूमि-पट्टी नहीं था। शहर के बीचों-बीच मुख्य बाज़ार, दुकानें और कार्यालय थे। उसके चारों तरफ़ श्वेत लोगों की बस्ती थी जो कि शहर के साथ ही सटे थे। उसके चारों ओर एक बफ़्फ़र ज़ोन बनाई गयी जिस में भारतीय मूल के लोग रहते थे। इनमें से अधिकांश लोग ख़ासे समृद्ध हैं जिनके बड़े बड़े घर हैं। इसके बाद अश्वेत लोगों की बस्तियां थीं जहां अधिकांश हाथ का काम करने वाले मज़दूर किस्म के लोग रहते थे।
अफ़्रीका में भारतीय मूल के लोग हमेशा व्यापार के लिये जाते रहे और बसते रहे। महात्मा गान्धी भी लंदन से अपनी वकालत की डिग्री लेने के बाद दक्षिण अफ़्रीका के डरबन शहर में जा बसे थे।
अफ़्रीकी देशों में भारतीयों को समय-समय पर हिंसा का सामना करना पड़ा है। फिर चाहे बात केन्या की हो या फिर युगांडा या घाना की। युगांडा से तो इदी अमीन ने भारतीयों को बुरी तरह से खदेड़ते हुए देश से निकाल बाहर ही किया था।
मुझे एअर इंडिया की नौकरी के दौरान अफ़्रीकी देशों में जाने का अवसर लगातार मिलता रहा। 1978 और 1998 के बीच मैंने तमाम अफ़्रीकी देशों की यात्रा की और वहां के हालात को समझने का प्रयास भी किया।
नैरोबी में मेरे बहुत से गुजराती और पंजाबी मूल के मित्र थे। सभी के बड़े-बड़े व्यवसाय थे। दुकानों और सुपर-मार्केट के मालिक थे। उनके घरों पर काम करने वाले और सुरक्षा-कर्मी मूल केन्या निवासी अश्वेत मूल के लोग ही होते थे। मेरे नज़दीकी मित्रों में शामिल थे मिनार रेस्टॉरेण्ट के मालिक मिस्टर भल्ला। नौरोबी जाना मेरे लिये जैसे दूसरे घर जाने जैसा होता था।
भारतीय मूल के लोग जिस देश में भी बसने जाते हैं, वहां के हो कर रह जाते हैं। उस देश की अर्थव्यवस्था में योगदान करते हैं; वहां के नियम क़ानूनों का पालन करते हैं। दक्षिण अफ़्रीका में क़रीब 14 लाख भारतीय मूल के लोग रहते हैं। इनमें से बड़ी संख्या तमिल एवं गुजराती मूल के भारतीयों की है। पोंगल, होली और दीवाली दक्षिण अफ़्रीका में बहुत चाव से मनाए जाते रहे हैं।
दक्षिण अफ़्रीका के अपदस्थ राष्ट्रपति जैकब जुमा को जेल में डाले जाने के कारण वहां उनके समर्थक देश में उपद्रव और हिंसा का माहौल बना रहे हैं। उपद्रवियों ने सैकड़ों शॉपिंग सेंटरों, मॉल, गोदामों, घरों और गाड़ियों में आग लगा दी है। कई हाईवे जाम कर दिए हैं। संचार सुविधाएं तहस-नहस कर दी हैं। आगज़नी और लूटपाट में करीब 10,400 करोड़ रुपए के माल का नुकसान हुआ है।
ऐसे वीडियो भी वायरल हो रहे हैं जिनमें कुछ अश्वेत लीडर भीड़ को निर्देश दे रहे हैं कि भारतीय घरों, दुकानों एवं गोदामों को लूटा जाए।
पुलिस ने हिंसा के आरोप में 3,000 लोगों को गिरफ्तार किया है। रक्षा मंत्री नोसिविवे नककुला ने कहा है कि हिंसाग्रस्त इलाकों में 10 हजार सैनिक तैनात किए गए हैं। स्थिति ज्यादा बिगड़ने पर और 20 हजार सैनिक तैनात किए जाएंगे। रिपोर्ट के मुताबिक, उपद्रवियों ने क्वाजुलु-नटाल और गौतेंग प्रांतों में ज़्यादा लूटपाट की है। क्वाजुलु-नटाल पूर्व राष्ट्रपति जुमा का गढ़ है।
79 वर्षीय राष्ट्रपति जैकब जुमा पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं। इन आरोपों में ही एक भारतीय परिवार का कोण जुड़ा है – और यह है गुप्ता परिवार। अजय, अतुल और राजेश गुप्ता तीनों भाई हैं। ये मूल रूप से उत्तर प्रदेश के सहारनपुर शहर के रहने वाले हैं। तीनों 1993 में द. अफ्रीका गए थे। वहां सहारा कंप्यूटर के नाम से कारोबार शुरू किया। सियासत में इनका खासा प्रभाव है।
जैकब जुमा पर राष्ट्रपति पद का दुरुपयोग करते हुए 2,60,000 करोड़ रुपए के भ्रष्टाचार का आरोप है। इसमें तीनों गुप्ता बंधु- अतुल, अजय और राजेश पर भी आरोप है कि वे इस घपले में शामिल हैं। गुप्ता बंधुओं ने जुमा के दो बच्चों को भी ग़ैरकानूनी फायदा पहुंचाया, जो दुबई में स्वनिर्वासन में रह रहे हैं। उनके प्रत्यर्पण की कार्रवाई शुरू कर दी गई है।
राष्ट्रपति जुमा से नज़दीकी की वजह से गुप्ता बंधुओं को ‘जुप्ताज’ कहा जाने लगा। जुमा इन भाइयों के इस कदर वश में थे कि इनके चक्कर में उन्होंने अपनी पार्टी तक से बैर मोल ले लिया था।
ऐसी ख़बरें मिली हैं कि भारतीयों और भारतीय मूल के अफ़्रीकी नागरिकों की संपत्ति के साथ आगज़नी और लूटपाट हो रही है। ऐसी ख़बरों पर अफ्रीकी सरकार का कहना है कि ऐसा ऐसा करने वाले राजनीति या नस्लभेद से प्रेरित नहीं हैं… बल्कि वे ऐसे अपराधी हैं जिनका मकॉसद बस मौक़े का फ़ायदा उठाकर लूटपाट करना है। लूटपाट की शुरुआत जोहान्सबर्ग से हुई, जो बाकी शहरों में चल रही है।
मैं जब डरबन गया था तो मैंने उस शहर के ढांचे को समझने का प्रयास किया। रंगभेद की नीति वाली सरकार ने शहर को कुछ इस तरह बांटा था कि अल्पसंख्यक श्वेत लोगों के जान-माल की रक्षा की जा सके। शहर दिल्ली की तरह कुछ गोलाई लिये था और मुंबई की तरह लंबी भूमि-पट्टी नहीं था। शहर के बीचों-बीच मुख्य बाज़ार, दुकानें और कार्यालय थे। उसके चारों तरफ़ श्वेत लोगों की बस्ती थी जो कि शहर के साथ ही सटे थे। उसके चारों ओर एक बफ़्फ़र ज़ोन बनाई गयी जिस में भारतीय मूल के लोग रहते थे। इनमें से अधिकांश लोग ख़ासे समृद्ध हैं जिनके बड़े बड़े घर हैं। इसके बाद अश्वेत लोगों की बस्तियां थीं जहां अधिकांश हाथ का काम करने वाले मज़दूर किस्म के लोग रहते थे।
जब कभी अश्वेतों में आक्रोश जागता तो वे श्वेत लोगों पर हमला करने के लिये निकल पड़ते। मगर रास्ते में उन्हें अमीर भारतीयों के घर दिखाई देते और वे अपना ग़ुस्सा भारतीयों पर निकाल कर वापिस अपने इलाक़ों में चले जाते। वे कभी श्वेतों के घरों तक पहुंच ही नहीं पाते थे।
इस बार तो गुप्ता बंधुओं ने अश्वेत दक्षिण अफ़्रीकियों को भारतीय मूल के लोगों पर कहर ढाने का कारण भी दे दिया है। तो ज़ाहिर है कि भारतीय मूल के व्यापारियों के गोदाम, शो-रूम, दुकानें लूटी जा रही हैं और आग की भेंट चढ़ाई जा रही हैं।
भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने दक्षिण अफ़्रीका के विदेश मंत्री नलेदी पंडोर के साथ इस विषय में बातचीत की है और भारत की चिंताओं से अवगत करवाया है। नलेदी पंडोर ने आश्वासन दिया है कि उनकी सरकार कानून-व्यवस्था को लागू करने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। सामान्य स्थिति और शांति की जल्द बहाली सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है।
हिंसा चाहे कोई भी करे और किसी पर भी करे उसे जायज़ नहीं ठहराया जा सकता। और फिर यहां तो बहुसंख्यक समाज अपना राजनीतिक ग़ुस्सा देश के अल्पसंख्यक नागरिकों पर उतार रहा है। उन्हें याद रखना होगा कि जो गोदाम, शो-रूम और दुकानें लूटी गयी हैं और जिन्हें आग के हवाले कर दिया गया है, उन सब में बहुसंख्यक आबादी के लोग ही काम करते थे। अब उनके पास काम नहीं रहेगा तो उनके परिवारों पर इसकी गाज गिरेगी। यदि राष्ट्रपति जैकब जुमा ने भ्रष्टाचार किया है तो उन्हें इसकी सज़ा मिलनी चाहिये। मगर उसका ख़मियाज़ा भारतीय मूल के लोग क्यों भुगतें?
अब कभी भूल से मत कहना – – “हिन्दू कायर है – हिन्दू लड़ना नहीं जानता –”
जी हाँ — आपने सही सुना है और आपने सही कहा भी है —
एक तरफ कुछ लोग कहते हैं, ” हिन्दू लड़ता नहीं – कायर है और जब विदेशों में अपनी भाषा – भारतीय संस्कृति के लिए लड़ने लगते हैं तो कोई साथ नहीं देता है — दूसरी तरफ विरोधी पक्ष संगठित होकर लड़ रहा है — क्या किया जाए — ???
ईसाइयों के खिलाफ लड़ाई मुश्किल है :–काले अंग्रेज भारत के विभिन्न मंत्रालयों और भारतीय अम्बेसडर बनकर आज भी आम भारतीयों को विदेशों में ईसाईयत अपनाने के लिए मजबूर कर रहे हैं — बार – बार लिखित और मौखिक निवेदन पर भी ध्यान नहीं दिया जा रहा है — क्या हो गया है देश की अस्मिता को —
ओमान से एक हिंदी प्रेमी भारतीय का प्रधानमंत्री मोदी से गुहार! @PMOIndia @narendramodi @AmitShah
A very good warning n reminder to people of the original African descent that they will themselves be biggest losers of their livelihood when they plunder n destroy commercial complexes owned by Indians
A very good informative n insightful Editorial.
Congratulations n thanks,Tejendra ji
दक्षिण अफ्रीका के ताजा हालात पर आज की सम्पादकीय में कुछ ज्ञानवर्धक तत्व बहुत महत्वपूर्ण हैं ।महोदय आपने अपनी
डरबन यात्रा के दौरान वहाँ की बसाहट पर जो बताया वह चौकाने वाली बात है।श्वेत और अश्वेत के बीच संघर्ष करता भारतीय सचमुच दुखद हालात में जी रहा है, जबकि वहाँ के आर्थिक विकास में भारतीय की महत्वपूर्ण भूमिका है।
जुप्ताज के मायने समझाकर आपने शंकाओं का समाधान किया है।
रंगभेद की नीति वाली सरकार पर बेहतरीन टिप्पणी हेतु साधुवाद
Dr prabha mishra
Very disturbing. The African government must act on war -footing and control the situation. Tejinder Sharma ji ,thanks for raising a significant issue.
दक्षिण अफ़्रीका से जुड़ी हुई समस्या पर अति विचारपूर्ण प्रस्तुति।
्
वहाँ भारतीय मूल के लोग किन समस्याओं का सामना कर रहे हैं, इस पर आपने मौजूदा दृष्टिकोण के आधार पर सुष्ठुरूपेण प्रकाश डाला है। “जुप्ताज़'” का प्रसंग रोचक लगा।
सारी दुनियां पर घूमती हुई आपकी सजग दृष्टि स्तुत्य है।
अब कभी भूल से मत कहना – – “हिन्दू कायर है – हिन्दू लड़ना नहीं जानता –”
जी हाँ — आपने सही सुना है और आपने सही कहा भी है —
एक तरफ कुछ लोग कहते हैं, ” हिन्दू लड़ता नहीं – कायर है और जब विदेशों में अपनी भाषा – भारतीय संस्कृति के लिए लड़ने लगते हैं तो कोई साथ नहीं देता है — दूसरी तरफ विरोधी पक्ष संगठित होकर लड़ रहा है — क्या किया जाए — ???
ईसाइयों के खिलाफ लड़ाई मुश्किल है :–काले अंग्रेज भारत के विभिन्न मंत्रालयों और भारतीय अम्बेसडर बनकर आज भी आम भारतीयों को विदेशों में ईसाईयत अपनाने के लिए मजबूर कर रहे हैं — बार – बार लिखित और मौखिक निवेदन पर भी ध्यान नहीं दिया जा रहा है — क्या हो गया है देश की अस्मिता को —
ओमान से एक हिंदी प्रेमी भारतीय का प्रधानमंत्री मोदी से गुहार! @PMOIndia @narendramodi @AmitShah
https://youtu.be/dCxG0yiIuX8
बहुत सुन्दर लिखा। बधाई
A very good warning n reminder to people of the original African descent that they will themselves be biggest losers of their livelihood when they plunder n destroy commercial complexes owned by Indians
A very good informative n insightful Editorial.
Congratulations n thanks,Tejendra ji
दक्षिण अफ्रीका के ताजा हालात पर आज की सम्पादकीय में कुछ ज्ञानवर्धक तत्व बहुत महत्वपूर्ण हैं ।महोदय आपने अपनी
डरबन यात्रा के दौरान वहाँ की बसाहट पर जो बताया वह चौकाने वाली बात है।श्वेत और अश्वेत के बीच संघर्ष करता भारतीय सचमुच दुखद हालात में जी रहा है, जबकि वहाँ के आर्थिक विकास में भारतीय की महत्वपूर्ण भूमिका है।
जुप्ताज के मायने समझाकर आपने शंकाओं का समाधान किया है।
रंगभेद की नीति वाली सरकार पर बेहतरीन टिप्पणी हेतु साधुवाद
Dr prabha mishra
वदक्षिण अफ्रीका की वर्तमान स्थिति पर विचारणीय प्रश्न उठता आलेख !
Very disturbing. The African government must act on war -footing and control the situation. Tejinder Sharma ji ,thanks for raising a significant issue.
बहुत सुंदर लिखा।
क्या बात।
दक्षिण अफ़्रीका से जुड़ी हुई समस्या पर अति विचारपूर्ण प्रस्तुति।
्
वहाँ भारतीय मूल के लोग किन समस्याओं का सामना कर रहे हैं, इस पर आपने मौजूदा दृष्टिकोण के आधार पर सुष्ठुरूपेण प्रकाश डाला है। “जुप्ताज़'” का प्रसंग रोचक लगा।
सारी दुनियां पर घूमती हुई आपकी सजग दृष्टि स्तुत्य है।