बसन्त, मोहतरमा और मैं – अरुण अर्णव खरे
उस दिन बसन्त के मौसम की पहली दस्तक दरवाज़े पर सुनी तो हमारा मन भी बावरा होने लगा और फेसबुक पर एक दोहा लिख कर डाल दिया -
फूलों की वेणी पहिन, पायल बाँधे पाँव ।
आया बसन्त पूछता, पता हमारे गाँव ।
हद हो गई...
कहानीः ‘तीर-ए-नीमकश’ – (प्रितपाल कौर)
तीर-ए-नीमकश
- प्रितपाल कौर.
वह बाथरूम से नहा कर बाहर निकली और बेडरूम में ही रुक गयी. खड़ी हो कर सोचने लगी की यूँ ही सुइट के लिविंग रूम में चली जाए बाथ गाउन पहने हुए या कि पूरी तरह ड्रेस अप हो कर? खुद को कुछ...
कहानी – हर सूरज डूबता है/ हेमिंग्वे/ लेकिन – विवेक मिश्र
कहानी - हर सूरज डूबता है/ हेमिंग्वे/ लेकिन - विवेक मिश्र
हाथों से छूटती डोर, चाहे वह एक पतंग की हो और बच्चे से छूट रही हो, ..या साँसों की हो और किसी देह से छूटी जा रही हो..., छूटते हुए वह मन में एक...
जीवन संगीत – ऊषा भदौरिया
आज कमरे में नीरवता छाई हुई थी । गिटार को दीवान पर उदास बैठा देखकर, पर्दा भी उदास-सा धीरे-धीरे उड़ा जा रहा था । दीवारों ने तो जैसे चुप्पी-सी साध ली थी।पर्दे से रहा ना गया । "कब तक ऐसे उदास रहोगे? ज़रा तो...
कहानी (गीताश्री) – 127वां…
127 वां
- गीताश्री
सड़क के एक तरफ ऊंचे ऊंचे फ्लैट थे तो दूसरी तरफ बेतरतीब बसी अवैध बस्तियां जिनमें कई पीढ़ियों का शोर भरा था। मामूली सुख सुविधाओं के लिए बिलबिलाती हुई आत्माओं का शोर।
सड़क के एक तरफ तो बड़ी बड़ी गाड़ियां सरपट दौड़ रही...
छोटी लकीर बड़ी लकीर
दिसम्बर के छोटे-छोटे दिन। भागते-दौड़ते भी दिन पकड़ से जैसे छूटा जाता है। सुबह पांच बजे से लेकर दोपहर ढ़ाई बजे तक एक टांग पर दौड़ते रहना वेदिका की आदत में शामिल है। अब कुछ समय मिला है तो छत की तरफ चल दी। धूप...