चार ग़ज़लें – नीरज गोस्वामी
नीरज गोस्वामी हिन्दी ग़ज़ल की गंगा-जमुनी रिवायत के महत्वपूर्ण ग़ज़लकार हैं। पहली बार उन्होंने हमारे आग्रह पर पुरवाई के लिये अपनी ग़ज़लें भेजी हैं। पुरवाई के पाठकों के लिये विशेष सामग्री है.... (संपादक)
ग़ज़लें – नीरज गोस्वामी
1.
ख़ुशी आँख मेरी छुपाती नहीं है
नुमाइश वो ग़म की...
ग़ज़ल ….. पूनम माटिया
क्या जानते हो मुझको, करते हो मुझसे बह्स
दिन-रात की ये खटपट, दिन-रात की ये बह्स
वो काम हो चुके, थे चर्चा के जो विषय
बेकार कर रहे हो, बेबात हमसे बह्स
आवाज़ है बला की, करते हैं बात तो
लगता है कर रहे हैं, हर बार हमसे बह्स
उसने तो ये कहा था, मैंने कहा था यूँ
सुनते कहाँ हैं दोनों, करते ही जाते बह्स
क्यों बह्स से डरो हो, ऐ दोस्त, मेरे भाई
निकलें हैं हल हमेशा, बड़े काम आये बह्स
Dr poonam matia(विद्यावाचस्पति)
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गीत (बृज राज किशोर ‘राहगीर’)
गीत
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किस तरह ख़ुद को बचाएँ
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आँधियाँ उन्मुक्तता की चल पड़ी हैं,
आप पर है, किस तरह ख़ुद को बचाएँ।।
कट गई हैं डोर से जो भी पतंगें,
किस तरह लूटी गईं, उनको निहारें।
बन्धनों से मुक्त होकर क्या हुआ है
हाल उनका, एक पल को यह विचारें।
ठीक है, नभ में ...
रक्तरंजित प्रेम का परचम हुआ है
देश विकसित हो रहा है,
ठीक है पर;
आपसी सद्भाव बेहद
कम हुआ है।
नफ़रतों के राजपथ पर
भीड़ कितनी,
प्रेम पगडण्डी मगर
सूनी पड़ी है।
द्वेष के वाहन सड़क पर
दौड़ते हैं,
और ममता
बैलगाड़ी सी खड़ी है।
हर महीने-दो महीने
में कहीं पर,
रक्तरंजित प्रेम का
परचम हुआ है।
भाईचारे की फ़सल
जबसे जली है,
बस्तियाँ सारी
डरी-सहमी हुई हैं।
ले सहारा...
गज़ल/ कमलेश भट्ट
गज़ल
१.
हर तरफ से खिड़कियाँ ही खिड़कियाँ महसूस होती हैं,
दूर रह करके भी घर में बेटियाँ महसूस होती हैं .
एक भी दाना कभी उपजे न उपजे अन्न का उनसे ,
पर, ख़ज़ाने की तरह ही खेतियाँ महसूस होती हैं .
कान से जब भी गुज़रते हैं कभी...
ग़ज़लें – आचार्य मूसा ख़ान अशान्त बाराबंकवी
आचार्य मूसा खान अशान्त बाराबंकवी
1- ग़ज़ल
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हिज़्र की रातों में आया लुत्फ इक मुद्दत के बाद,
ज़ीस्त के लम्हो में आया लुत्फ़ इक मुद्दत के बाद ।।
याद में तेरी बहाकर अश्क़ मैं जीता रहा,
मुझको बरसातों में आया लुत्फ़ इक मुद्दत के बाद ।।
बचपने में दिल मेरा...