1960 का दशक और हिन्दी की सस्पेंस फ़िल्में

वैसे तो 1950 के दशक में स्तरीय सस्पेंस फ़िल्मों का निर्माण शुरू हो गया था। इस दशक में देव आनंद ने सी.आई.डी. (1956, देव आनन्द, शकीला, जॉनी वॉकर एवं वहीदा रहमान, निर्देशकः राज खोसला)  बी.आर. चोपड़ा ने 1957 में (अफ़साना – अशोक कुमार, वीना,...

डॉ आशा रानी का लेख – भारतीय साहित्य में जीवन मूल्य

मूल्य शब्द ‘मूल+यत्1  से निष्पन्न है, जिसका अभिप्राय है किसी वस्तु के विनिमय में दिया जाने वाला धन, दाम, बाजार भाव आदि। यह मूल्य पद का अभिधात्मक अर्थ है। समाज ने अपने महत्तम चिंतन के परिणाम स्वरूप मानव एवं मानवता की बेहतरी के लिए...

राजेन्द्र कृष्ण : एक संपूर्ण फ़िल्मी व्यक्तित्व

किसी की याद में दुनिया को हैं भुलाए हुए ज़माना गुज़रा है अपना ख़्याल आए हुए.... बॉलीवुड सिनेमा के स्वर्णकाल में मजरूह सुल्तानपुरी, शैलेन्द्र, शकील बदायुनी और साहिर लुधियानवी का समकालीन एक ऐसा गीतकार भी हुआ है जो केवल गीत नहीं लिखता था बल्कि पटकथा और...

कुलदीप मीणा का लेख – मीरा के काव्य में व्यक्त मध्यकालीन सामंती समाज

कुलदीप मीणा आम धारणा यह है कि मीरा का समय और समाज ठंडा और ठहरा हुआ था। मीराँ को रहस्यवादी संत-भक्त और कवयित्री मानने वाले इतिहासकार, समालोचक और नये स्त्री-विमर्शकार, इस सम्बन्ध में कमोबेश सभी एकमत हंै। स्त्री विमर्शकार मीराँ के विद्रोह तेवर, साहस...

शैलजा सिंह का लेख – देश के सांस्कृतिक विस्तार में हिंदी की भूमिका

संस्कृतियां और भाषाएं दोनों एक दूसरे की वाहक होती हैं। इसके बिना मनुष्य जीवन तो अधूरा है ही चर अचर भी अधूरा है। दो सौ वर्षों का साम्राज्यवादी शासन झेलने के बाद  हिंदी नष्ट होने के बजाय और गतिशील होती चली गई। साधु संतों फकीरों व्यापारियों...

वंदना यादव का लेख – दीपावली पर कोई घर नहीं आया!

लगभग तीन वर्ष पहले ऐसा हुआ कि कोई घर नहीं आया! पांच-छह महीने पहले नया घर ख़रीदा था इस लिहाज से अपने घर में हमारी पहली दीवाली थी। फौज द्वारा मुहय्या करवाए फर्नीचर को छोड़ कर आए थे, इसलिए अपने घर में हर चीज़...