आराधना चमोला की कलम से – ‘शापित किन्नर’ उपन्यास में चित्रित हाशिये के समुदाय का जीवन यथार्थ

सारांश साहित्य किसी भी समस्या को उजागर करने का सबसे सशक्त माध्यम माना जाता है I वर्तमान में, विविध विमर्शों के माध्यम से उन सभी वर्गों को समाज के मुख्य प्रवाह में लाने का प्रयत्न किया जा रहा है, जो आज तक हाशिये पर थे...

उन्हें भी जीने का हक़ है – भारती (शोधार्थी)

उन्हें भी जीने का हक़ है... (ट्रांसजेंडर विज़िबिलिटी दिवस के परिप्रेक्ष्य में)   सूनी राह अनजान डगर मैं भी चाहती हूं अब अपना घर लिंगभेद की नीति पर करा क्यों मुझे अपनों ने बेघर मासूम कदम, अनजान डगर ना जानूं मंजिल है किधर पथराई आंखों से देखती हूं शायद आ जाए अपनों की कोई खोज-खबर... अस्मिता...

महेश शर्मा का लेख – हुसैनी ब्राह्मण कौन ?

हमें आश्चर्य होगा हुसैनी शब्द के साथ ब्राह्मण शब्द पढ़ कर | क्या यह संभव है ? हाँ  यह संभव ही नहीं यथार्थ भी है और मौजूद भी | संचार क्रांति के दौर में  हमारे सामने इतिहास के कई तथ्य जो आमतौर पर छुपे...

गोवर्धन यादव का लेख – भारतीय संस्कृति एवं हिन्दू-धर्म के रक्षक-श्री झूलेलाल

बात उन दिनों की है जब सिन्ध का बादशाह मिर्ख राजमद में अन्धा होकर हिन्दुओं पर अत्याचार ढा रहा था. उसने हिन्दुओं को चेतावनी देते हुए राज्य में घोषणा करवा दी कि सारे हिन्दू मुसलमान बन जाएं, यदि वे ऎसा नहीं करते हैं तो...

संतोष चौधरी का लेख – रंगीले राजस्थान के लोकगीत

विश्व के सभी राष्ट्रों में आरम्भ से ही लोक-संगीत का महत्व रहा है। आचार्य रविन्द्र नाथ टैगोर ने लोक गीतों को संस्कृति का सुखद सन्देश दी जाने वाली कला कहा है।           जनम - मरण, तीज - त्यौहार, ब्याह, सगाई, परिवार,...

अरविंद कुमारसंभव का लेख – राजस्थान की महिलाओं का भक्ति त्यौहार गणगौर

राजस्थान रेत के टीलों, घने जंगलों, अरावली के मध्यम ऊंचे पर्वतों, झीलों की विविध आभा वाला रंगबिरंगा प्रदेश है  जहां एक ओर बहादुर राजपूती आन और शान के जोश भरे इतिहास गीत गूंजते हैं वहीं दूसरी ओर ढ़ोला मारू के प्रेमगीत और तीज त्यौहारों...