डॉ अरुणा अजितसरिया का लेख – मानवीय संबंधों में संपूर्णता की तलाश में बेचैन: मोहन राकेश

जो लोग ज़िंदगी से बहुत कुछ चाहते हैं उनकी तृप्ति अधूरी ही रहती है - इस अधूरेपन की बेचैनी को उपन्यास, कहानी, नाटक आदि विधाओं में संप्रेषणीयता प्रदान करने वाले मोहन राकेश हिंदी साहित्य के एक सशक्त हस्ताक्षर हैं। आधुनिक जीवन के असंतोष और...

संतोष चौधरी का लेख – रंगीले राजस्थान के लोकगीत

विश्व के सभी राष्ट्रों में आरम्भ से ही लोक-संगीत का महत्व रहा है। आचार्य रविन्द्र नाथ टैगोर ने लोक गीतों को संस्कृति का सुखद सन्देश दी जाने वाली कला कहा है।           जनम - मरण, तीज - त्यौहार, ब्याह, सगाई, परिवार,...

डॉ. कमलेश द्विवेदी को याद करते हुए

दिल की बातें दिल तक पहुँचें / यानी वो मंज़िल तक पहुँचें... सच!... किंतु असमय, अप्रत्याशित, जीवन की विकट से विकट परिस्थितियों में कभी न हार मानने वाले मेरे अभिन्न पितातुल्य, सुहृदय, सौम्य, मेरे साहित्यिक जीवन के वटवृक्ष डॉ कमलेश द्विवेदी सर जीवन समर मे...

वन्दना यादव का स्तंभ ‘मन के दस्तावेज़’ – दुआएं साथ हैं

"चलती फिरती आँखों से अजाँ देखी है मैंने जन्नत तो नहीं देखी लेकिन माँ देखी है।" मुन्नवर राणा ने इस एक शे'र में वह सब कह दिया जो एक बच्चे के लिए माँ होती है। दरअसल माँ सिर्फ वह महिला नहीं है जिसने औलाद को जन्म दिया।...

रजनीश राज का लेख : कपूरों का ऋषि चला गया

अध्ययन में अधूरा लेकिन ज्ञान में गहन था वह ऋषि। विनम्र इतना  कि कोई भी उनका मुरीद हो जाए और मुखर इतना  कि किसी की भी ख़बर ले ले ।उनके इस स्वभाव से ट्विटर पर  उनके ३.५ मिलियन फोलोवर बेहतर तरीक़े से वाक़िफ़ है।अपने...

प्रो. कन्हैया त्रिपाठी का लेख – गाँधी एवं हिंदी साहित्य

सारांश - हिंदी का सांस्कृतिक स्वरूप हिंदी जगत के एकीकृत, सार्वभौमिक एवं मानवीय संवेदना का आधार है। भूमंडलीकरण के दौर में हिंदी का हस्तक्षेप कितना सारगर्भित एवं सांस्कृतिक हो सका है यह विमर्श का विषय हो सकता है लेकिन हिंदी विश्व में अपनी एक अस्मिता...