कुसुम अग्रवाल की बाल कहानी – बालक बना महान

सन् 1891 की बात है। बंगाल के मेदिनीपुर जिले में वीरसिंह नामक गांव में में एक अत्यन्त गरीब बंगाली दंपति रहता था- ठाकुर दास और भगवती देवी। सौभाग्य से भगवती देवी गर्भवती थी परंतु उनकी मानसिक हालत ठीक नहीं थी। यह देख कर ठाकुर...

विनीता राहुरीकर की बाल-कहानी – मोनू और जेनॉन-एक्स 30 की सैर

आज मोनू की इच्छा हुई अंतरिक्ष की सैर करने की। धरती पर अब कोई ऐसी जगह नहीं बची थी जहां जाकर कुछ देर शांति से बैठा जा सके। ना हरियाली बची थी ना नदियां और तालाब। थी तो बस हर तरफ लोगों की भीड़...

पुरवाई की नयी शुरुआत, नंदन से लंदन की ओर बढ़ने का समय

कोरोना काल ने जनजीवन के सभी क्षेत्रों को बुरी तरह से प्रभावित किया है। इससे साहित्य जगत भी अछूता नहीं है। पिछले दिनों कोरोना काल के प्रभाव में ही लम्बे समय से चली आ रही दो प्रतिष्ठित एवं लोकप्रिय पत्रिकाओं नंदन और कादम्बिनी के...

अमृता पाण्डेय की बाल कविता – झूमती चली पुरवाई

यूं झूमकर चली एक दिन पूरब से पुरवाई हिलने लगा हर पत्ता बूटा, कली और अमराई, झूम झूम कर अनजाने में पहुंच गई पश्चिम की ओर नए-नए सब चेहरे देखे, नया जमाना, नया दौर.... यूं ही मस्ती में घूमते पहुंच गई लंदन शहर चल रही थी वहां ज़ोर की...

उषा साहू की बाल-कहानी – मजदूर दिवस

यही कोई पाँच बजे का समय था, दीदी अपनी बालकनी में बैठी कोई पुस्तक पढ़ रहीं थी । चेहरा उन्होने दीवार की तरफ कर लिया था, जिससे आँखों पर धूप न पढ़े । अचानक ज़ोर से आवाज सुनाई दी, “दीदी... दीदी...” आवाज इतने ज़ोर...

गोविन्द भारद्वाज की बाल कविता – शंख अनोखा

पृथ्वी की आकृति जैसा‌ ही, शंख का होता आकार। सागर की गहराई में रहता, इसका अनोखा परिवार। शंख बजाना सनातन धर्म में, होता है बड़ा जरूरी। विज्ञान की आंखों से देखें तो, होता ऊर्जा की धूरी। जीवाणु का नाश कर शंख सदा, भरे है नया उत्सर्जन। कैल्शियम का स्त्रोत सदियों से, करे है उत्साहवर्धन। कुम्भक,रेचक, प्राणायाम...