तराज़ू
"तुम अगर फोन पर बता देती तो मैं बना देता ना कुछ, या फिर ऑर्डर ही कर देता। देर तो नही होती इतनी।"
विक्रम असहाय सा झल्ला रहा था।
"अब मैने देरी से आने का फोन किया था, तब ये सब कुछ तो तय ही था,...
अपना-अपना नशा
“जरा ठहरो ...” कहकर मैं रिक्शा से नीचे उतरा। सामने की दुकान पर जाकर डिप्लोमेट की एक बोतल खरीदी, उसे कोट की भीतरी जेब में ठूँसा और वापस रिक्शा पर आ बैठा। मेरे बैठते ही रिक्शा फिर धीमे-धीमे आगे बढ़ा। रिक्शावाले का रिक्शा...
लघुकथा
(1) सक्षम
पारुल बहुत बैचेनी महसूस कर रही थी। किसी काम में मन भी नहीं लग रहा था। प्रसव के बाद ऑफिस में पहला दिन था उसका ।
वहीं मातृत्व की छाया से दूर अपनी सात माह की बिटिया को डेकेयर में पहली बार छोड़कर...