उषा साहू की लघुकथा – अछूत कौन
सुबह नौ बजे थे कि राजकोट से नेहा के पति राकेश का फोन आ गया,
“... हाँ राकेश बोलो, क्या खबर है राजकोट की...”
“ बस जो न्यूज़ देखती हो, वही खबर है और क्या है ?
“ पता नहीं बाबा कब ये लॉक डाउन खुले, और तुम अहमदाबाद आओ...”
“अच्छा अपना...
बालकृष्ण गुप्ता गुरु की तीन लघुकथाएँ
1 - परछाईं
सीमा की ओर प्रस्थान करने को आतुर फौजी पिता की गोद में चढ़ते हुए बेटे ने कहा, ‘पापा, मैं भी आपके साथ जाऊंगा।’
‘नहीं बेटे नहीं। अभी तुम्हारे खेलने-खाने के दिन हैं।’
‘पापा, मम्मी अपनी सहेलियों को बता रही थी, ‘आप दुश्मनों के...
आशीष दलाल की दो लघुकथाएं
1- इंसान
सिर पर तगारी उठाये चलते हुए पास ही पड़ी रेत पर उसका पैर फिसला और तगारी उसके हाथ से छूटकर दूर जा गिरी। वह वहीं औंधे मुंह गिर पड़ा। दूसरे ही पल उठकर दो पैरों पर उंकडू बैठकर छिल गए घुटने से रिसते...
बालकृष्ण गुप्ता ‘गुरु’ की दो लघुकथाएँ
1 - थाली में बड़ा
‘बड़ा बनने के लिए ‘बड़ा’ बनना पड़ता है।’ विजय ने बेटे रवि से कहा।
‘बड़ा बनना पड़ता है, समझा नहीं?’
‘तुम्हारी मम्मी बड़ा बनाती है, जाकर पूछो।’ पिता ने मुस्कुराते हुए कहा।
‘पहले दाल को अच्छी तरह से साफ कर काफी देर तक...
संगीता सिंह की लघुकथा – जिंदगी का व्यवसाय
डॉक्टर साहिबा मेरी पत्नी बहुत देर से दर्द से कराह रही है आप उसे जल्दी देख लेंगी तो मेहरबानी होगी आपकी।
डॉक्टर- सिस्टर सिस्टर ....
कौन है ये आदमी इसको अंदर किसने आने दिया ।
क्या परेशानी है इसकी वाइफ को,
सिस्टर- कुछ नहीं मैडम बस लिवर पेन...
दिव्या शर्मा की लघुकथा – रंगरेज़
" यह पीला रंग तुम पर बहुत खिलेगा।"किसी ने हौले से उससे कहा था।
वह मुस्कुराई और उसके तन-बदन पर पीत रंग चढ़ गया।
"तुम्हारे लिए अब लाल रंग जरूरी है।" एक दिन उसी ने कहा।
वह मुस्कुराई। जल्द ही सुर्ख लाली उसके चेहरे पर खिलने लगी।
"आओ,...