संपादकीय – दिलों को जोड़ने वाला त्यौहार : बैसाखी

मित्रों, मंगलवार नौ तारीख़ को भारतीय उच्चायोग में बैसाखी का त्यौहार मनाया गया। कार्यक्रम का आयोजन गांधी हॉल में किया गया जो कि दर्शकों से खचाखच भरा था। महामहिम उच्चायुक्त श्री विक्रम दोरईस्वामी एवं उपउच्चायुक्त श्री सुजीत घोष ने भगवे रंग की पगड़ियां पहन रखी थीं। उन्होंने...

संपादकीय – भारतीय जनता पार्टी ने विपक्ष को 4-1 से हराया

एक बात हैरान कर देने वाली है कि मायावती और बसपा का तो मतदाताओं ने फ़ातिहा ही पढ़ दिया लगता है। लगता है कि उनके लिये कम-बैक करना आसान नहीं होगा। कल तक राष्ट्रीय राजनीति में एक अहम् नाम – ‘मायावती’ जैसे पूरी तरह...

संपादकीय : फैज़ की नज़्म पर विवाद में गलती कहाँ हो रही?

फ़ैज़ प्रगतिशील थे या नहीं इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। फ़ैज़ वामपन्थी थे या नहीं उससे भी कोई फ़र्क पड़ता। फ़र्क केवल आज के समय का है। आज हमें केवल इतनी सी बात समझनी होगी कि किसी भी रचना को उसके कालखण्ड से निकाल...

संपादकीय – पुस्तक मेला का खेला

कुछ प्रकाशक अपने-अपने स्टॉल पर पुस्तक चर्चा का आयोजन भी करते हैं। बेचारा लेखक यहां भी अपना किरदार पूरी शिद्दत से निभाता है। वह समीक्षक और आलोचक का इंतज़ाम तो करता ही है, पांच से दस श्रोताओं को भी आमंत्रित करता है और मिठाई...

संपादकीय – ब्रिटेन के काउंसिल चुनावों में लेबर पार्टी को बढ़त

ब्रिटेन में प्रत्याशियों की एक विशेष प्रजाति पाई जाती है जिसका नाम है – पेपर कैंडिडेट। यानी कि काग़ज़ी प्रत्याशी। उन्हें उन क्षेत्रों में नाममात्र के लिये खड़ा किया जाता है जहां पार्टी को कतई जीतने की कोई उम्मीद नहीं होती। ऐसे प्रत्याशी...

संपादकीय : ब्रेकिंग न्यूज़ और मीडिया का ग़ैरज़िम्मेदाराना व्यवहार

सुशांत सिंह राजपूत की मृत्यु ने मीडिया को दो धड़ों में बांट दिया है। एक तरफ़ वो मीडिया जो चिल्ला चिल्ला कर रीया चक्रवर्ती को दोषी घोषित कर चुका है। तो दूसरी तरफ़ वो मीडिया है जिसको देख कर साफ़ पता चलता है कि...