संपादकीय – किराये पर परिवार…!

अब जापान में किराये के रिश्तेदार मिलने लगे हैं। डेली वेज वाले कलाकार भी हैं। जो दिन में परिवार के सदस्य की एक्टिंग करते हैं और शाम को अपनी दिहाड़ी के पैसे अपनी जेब में डाल के वापिस घर को निकल लेते हैं। यह...

संपादकीय – गाय को लिपटाना भी एक इलाज है

यदि भारत में कहीं कोई गाय के बारे में बात करता है तो उस पर हिंदुत्व, संघी और न जाने कौन-कौन से  आरोप लगाए जा सकते हैं। मगर जो बात ब्रह्मर्षि वशिष्ठ और विश्वामित्र हज़ारों साल पहले समझ गए थे, पश्चिमी सभ्यता को आज...

संपादकीय – पूनम पांडेय और मौत का नाटक…

पूनम पांडेय की बात पर कोई यकीन नहीं करेगा कि उसने अपने मरने का नाटक सर्वाइकल कैंसर के विरुद्ध जागरूकता फैलाने के लिये किया था। सच तो यह है कि ऐसे लोग अपनी विश्वसनीयता अपने ही घटिया व्यवहार के कारण खो देते हैं। यदि...

संपादकीय – तबस्सुम यानी कि ‘किरण बाला सचदेव’ नहीं रहीं…!

अपने एक टीवी सक्षात्कार में तबस्सुम ने स्वयं बताया था कि उनके पिता एक हिन्दू थे जिनका नाम था अयोध्यानाथ सचदेव और माँ असगरी बेग़म एक मुसलमान थीं। पिता ने अपनी पत्नी की भावनाओं का सम्मान करते हुए पुत्री का नाम रखा तबस्सुम और...

संपादकीय – रेत समाधि के बहाने…!

एक बात तो तय है कि इस ऐतिहासिक घटना ने भारत के हिन्दी प्रकाशकों को नींद से अवश्य जगाया होगा। अब तमाम लेखक एवं प्रकाशक इस बात पर विचार करना शुरू करेंगे कि अब तक क्या ग़लत होता रहा कि हिन्दी साहित्य का अनुवाद...

संपादकीय – क्या संविधान सच में सर्वोपरि है ?

जबकि विपक्ष सत्तारूढ़ सरकार पर संविधान की धज्जियां उड़ाने का आरोप लगा रहा है, एक सवाल तो उठता ही है कि आखिर - संविधान दिवस के उपलक्ष्य में सर्वोच्च संवैधानिक संस्था यानी संसद में आयोजित कार्यक्रम का विरोध कर संविधान का अपमान कौन कर...