योगेंद्र पाण्डेय की कविता – गुलमोहर के फूल

तुमने जहाँ रखे थे अपने क़दम वहाँ खिल आए हैं गुलमोहर के फूल उग आए हैं दूब की घास ये रास्ता जो जाता है अंजान सी मंज़िल की ओर वहाँ कई चौराहे मिलेंगे और हर एक चौराहे पर होगा तुम्हारे घर का पता हम ढूँढ लेंगे तुम्हें तुम्हारी कदमों के निशान से तुम दूर नहीं हो,...

आशीष मिश्रा की कविता – शून्य है

हवाई जहाज़ की खिड़की से देखा तो कुछ दिखाई नहीं दिया शायद आकाश में ही था इसलिए आकाश नहीं दिखा ना नीला, ना ख़ाली, ना भरा ना चाँद, ना सूरज एक तारा भी नहीं। क्यूँ, ऐसा क्यूँ ? क्या इसलिए कि मैं स्वयं आकाश था या बाहर अँधेरा था हो सकता है खिड़की ही...

चंद्र मोहन की तीन कविताएँ

ब्रह्मपुत्र बंधु क्या तुम्हें पता है ब्रह्मपुत्र सराय घाट के पुल तक आते-आते कितना नाम बदलते आता है बंधु क्या तुम्हें पता है अरुणाचल में जो अभी बह रहा है ब्रह्मपुत्र उसका नाम क्या है बंधु क्या तुम्हें पता है चीन में बांग्लादेश में और तिब्बत में ब्रह्मपुत्र का नाम क्या है बंधु क्या...

सूर्यकांत शर्मा की कविता – कोई समझा नहीं

अदृश्य से दृश्य हुआ पर कोई समझा नहीं। दृश्य से स्पृश्य हुआ पर कोई समझा नहीं। स्पृश्य से मुखरित हुआ मुखरित से प्रखर हुआ प्रखर से प्रचारित और प्रसारित भी हुआ हद्द है , पर कोई समझा नहीं। बहुत बौराया चिल्लाया नाचा और तो और कूदा भी, पंच तत्व पुतले के सारे के सारे जतन यूं ही गए क्यूंकि कोई...

कुसुम पालीवाल की कविता – आओ ! सूरज से आँख मिलाएँ

आओ ! चाँद पर बैठ कर सूरज से आँख मिलाएँ कलियों से लेकर रंग पराग अपना एक अस्तित्व बनाएँ हों चाहे विपरीत परिस्थिति नहीं डरें ………नहीं झुकें एक अपनी डगर बनाएँ हम आगे ही बढ़ते जाएँ आओ ! सूरज से आँख मिलाएँ … नदियाँ कल-कल करती हैं उनको भी नया राग बताएँ पथरीले पथ पर...

रश्मि ‘लहर’ के दोहे

1. पद की गरिमा के बनें, झूठे दावेदार. प्रिय है मिथ्या चाटुता, मिथ्या ही सत्कार. 2. औरों की श्री कीर्ति का, कब रखते वे ध्यान? कृपाकांक्षी हैं स्वयं, बनते कृपानिधान. 3. थाली के बैंगन सदृश, कभी दूर या पास. आखिर उनकी बात पर, कैसे हो विश्वास? 4. उनकी बातें चुभ रहीं, चुभता हर संदेश. पद-...