कुलदीप दहिया ‘मरजाणा दीप’ की कविता – आ अब लौट चलेें
हैं चारों ओर वीरानियाँ
खामोशियाँ, तन्हाईयाँ,
परेशानियाँ, रुसवाईयाँ
सब ओर ग़ुबार है !
आ अब लौट चलें.....................
चीत्कार, हाहाकार है
मृत्यु का तांडव यहाँ,
है आदमी के भेष में
यहां भेड़िये हजार हैं !
आ अब लौट चलें...................
खून से सनी यहाँ
इंसानियत की ढाल है,
नफ़रतों के ज़हर से
भरी आँधियाँ बयार हैं !
आ अब लौट...
पद्मा मिश्रा की कविता – मेरा बचपन, बाबुल का आंगन!
किसको पता था क़ि,
छूट जायेगा एक दिन-
मेरा प्यारा घरौंदा,,
बाबुल का आँगन..
आता याद आज भी, वो खोया मेरा उपवन,
बाबुल का आँगन..
अब तो बस ढलती हुई ,
उम्र क़ी तहरीरें है,
सूनी हथेलियों पर,
नियति की लकीरें हैं,
भूल कहाँ पाउंगी,
मेंहदी के फ़ूल रची गोरी हथेलियों पर,
अनजाना नाम कोई ..
सूनी...
शैलेश शुक्ला की कविता – चले गए गाँव श्रमिक
गलियाँ हो गईं सूनी और घरों में पड़ गए ताले
चले गए अब गाँव श्रमिक सब इनमें रहने वाले।
बरसों-बरस जहाँ था अपना खून-पसीना बहाया
उस शहर ने इस संकट में कर दिया इन्हें पराया।
सेवा में वो जिनकी तत्पर रहते थे दिन-रात
पड़ी मुसीबत तो किसी ने सुनी...
जीतेंद्र शिवहरे की कहानी – डेली अप डाउन
जीतेंद्र शिवहरे
कामाक्षी बस की प्रतिक्षा में खड़ी थी। उसे विश्वास था कि आज बस वाले लोकल सवारियां नहीं बैठायेंगे। उसने दौड़कर एक बस पकड़ी ली।
"अरे! मैडम आपको बोला था न कि अमावस-पुनम के दिन बस में न चढ़ा करो।" बस कंडक्टर क्रोधित होकर...
देवी नागरानी द्वारा अनूदित सिंधी लेखिका आतिया की कविताएँ
1- अमर गीत
जिस धरती की सौगंध खाकर
तुमने प्यार निभाने के वादे किये थे
उस धरती को हमारे लिये क़ब्र बनाया गया है
देश के सारे फूल तोड़कर
बारूद बोया गया है
ख़ुशबू ‘टार्चर’ कैम्प’ में आख़िरी सांसें ले रही है
जिन गलियों में तेरा हाथ थामे
अमन के ताल पर...
मुकेश कुमार सिन्हा की पांच कविताएँ
मुकेश कुमार सिन्हा
1- खून का दबाव व मिठास
जी रहे हैं या यूँ कहें कि जी रहे थे
ढेरों परेशानियों संग
थी कुछ खुशियाँ भी हमारे हिस्से
जिनको सतरंगी नजरों के साथ
हमने महसूस कर
बिखेरी खिलखिलाहटें
कुछ अहमियत रखते अपनों के लिए
हम चमकती बिंदिया ही रहे
उनके चौड़े माथे की
इन्ही...