कमला नरवरिया की लघुकथा – रक्षाबंधन
सावन का महीना चल रहा था। आसमां नीला और धरती पहले से अधिक हरी हो गई थी। बारिश की बूंदों में किलोल करती नन्ही गौरैया और झूलों पर मल्हार गाती लड़कियां उसकी उदासी बढ़ा रही थी। जाने कितने बरस बीत गए उसे मायके गये...
दिव्या शर्मा की दो लघुकथाएँ
1- सर्व धर्म समन्वय
फेसबुक पर एक न्यूज एजेंसी के पेज पर नजर पड़ते ही मैं वहीं रूक गई और खबर पढ़ने लगी। ऑक्सीजन की कमी के कारण होने वाली मौतों का बाजार सजा था और मसालेदार बनाकर खबर परोसी गई थी। लोगों के तीखे...
कमला नरवरिया की दो लघुकथाएँ
1 - पंचायत
गांव में चौपाल पर मर्दों की पंचायत बैठी हुई थी। पंचायत में झुनिया सिर झुकाए हुए खड़ी थी। एक तरफ उसका पति और दूसरी तरफ उसका तथाकथित प्रेमी खड़ा था। पंचायत ने झुनिया का पक्ष सुने बिना उसे पराए मर्द से संबंध...
सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा की दो लघुकथाएँ
1 - दूसरे जैसा
"बड़ी गुमसुम सी लग रही हो ।"
"नहीं तो !"
"झूठ मत बोलो ।"
"तुमने उस शक्स की बात सुनी ।"
"किस शख्स की ?"
"अरे वो जो अभी अभी यहां से गया है !"
"सुनी तो नहीं पर क्या कहा उसने ?"
उसने कहा , "तुम तो...
रमेश यादव की तीन लघुकथाएँ
1 - अहिंसावादी पार्टी
जंगल में चुनाव की सरगर्मियां तेज थीं इसलिए प्राणियों का और प्राणी नेताओं का आपसी मेल मिलाप बढ़ गया था। छुटभैये नेता अपनी-अपनी रोटी सेंकने के लिए अचानक सक्रिय होकर मैदान में ताल ठोंक रहे थे। लोगों को लुभाने के लिए...
डॉ. नीलिमा तिग्गा की तीन लघुकथाएँ
1 - मोक्ष के दाने
शादी में आएँ बाराती बड़े प्रेम भाव से टेबल पर सजाएँ अलग-अलग व्यंजनों का आस्वाद लेकर तृप्त हो रहे हैं I प्लेट में भर-भरकर ऐसे ले रहे हैं जैसे कि अभी नहीं लिया तो फिर मिलेगा नहीं I ‘इतनी भीड़...